(आर्थिक मुद्दे) मुद्रा कर्ज योजना : चुनोतियाँ और रास्ते (Mudra Loan Scheme : Challenges and Solutions)
एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)
अतिथि (Guest): राजीव रंजन (वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार), शिशिर सिन्हा,वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार, हिंदू बिजनेस लाइन)
हमारे लिए क्यों ज़रूरी हैं छोटे उद्योग?
छोटे उद्योगों की भारतीय अर्थव्यवस्था में अहम् भूमिका है। कृषि के बाद रोजगार देने वाला ये दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है। देश में करीब 5.1 करोड़ MSME इकाइयाँ सक्रिय हैं। इन इकाइयों के अलग अलग सेक्टर्स में लगभग 11.7 करोड़ लोग काम कर रहे है। छोटे उद्योगों में, कुल वर्कफोर्स के लगभग 40% लोग कार्यरत हैं। वहीँ दूसरी ओर, कुल जीडीपी में एमएसएमई की हिस्सेदारी लगभग 37% है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़ MSME इकाइयों का कुल निर्यात में 43% की हिस्सेदारी है।
क्या है मुद्रा बैंक?
वित्त वर्ष 2015-16 के अपने बजट भाषण में केन्द्रीय वित्त मंत्री ने मुद्रा बैंक के स्थापना की बात की थी। मुद्रा का पूरा नाम Micro Units Development and Refinance Agency यानी सूक्ष्म इकाई विकास पुनर्वित्त एजेंसी है। कंपनी अधिनियम 2013 के तहत मुद्रा बैंक को एक कंपनी के रूप में और आरबीआई के तहत एक गैर बैंकिंग संस्था के रूप में रजिस्टर्ड किया गया था।
इसका मुख्य काम सूक्ष्म व्यवसायों/इकाइयों को क़र्ज़ देने वाली सूक्ष्म वित्त संस्थानों की मदद करना और उनकी रिफाइनेंसिंग करना है। ये काम ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना’के तहत किया जाता है। रिफाइनेंसिंग का मतलब मुद्रा बैंक सीधे तौर पर उद्यमियों को क़र्ज़ नहीं देती है बल्कि सूक्ष्म वित्त संस्थानों के ज़रिये ज़रूरतमंद उद्यमियों को क़र्ज़ दिया जाता है। साथ ही यह सूक्ष्म वित्त संस्थानों के लिए रेगुलेटर के रूप में भी काम करता है।
क्यों ज़रुरत पड़ी मुद्रा बैंक की?
छोटे उद्यमों के विकास की सबसे बड़ी बाधा है इस क्षेत्र के लिए वित्तीय सहायता की कमी। इस क्षेत्र के लिए बैंकों द्वारा उपलब्ध सहायता बहुत कम है। कुल बैंक-क़र्ज़ के 15% से भी कम हिस्सा MSME को मिल पाता है।
साथ ही गैर-कॉर्पोरेट क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा ग़ैर-पंजीकृत उद्यमों के रूप में काम करता है। ये इकाइयाँ विधिवत खाता-बही नहीं रखतीं और कराधान के मामल में औपचारिक रूप से शामिल नहीं की जातीं। इसीलिए बैंक उन्हें क़र्ज़ देने में हिचकिचाते हैं। इन्ही सब दिक्कतों से निपटने के लिए भारत सरकार ने मुद्रा बैंक की स्थापना की।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत क़र्ज़ की संरचना
इस योजना के तहत बिना गारंटी के लोन मिलता है। इसके अलावा लोन के लिए कोई प्रोसेसिंग चार्ज भी नहीं लिया जाता है। इनकी गारंटी क्रेडिट गारंटी फॉर माइक्रो यूनिट्स (CGFMU) द्वारा ली जाती है। इसके अलावा नैशनल क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी (NCGTC) भी लोन की गारंटर होती है।
मुद्रा बैंक ने कर्ज लेने वालों को तीन हिस्सों में बांटा हैः व्यवसाय शुरू करने वाले, मध्यम स्थिति में कर्ज तलाशने वाले और विकास के अगले स्तर पर जाने की चाहत रखने वाले।
इन तीन हिस्सों की जरूरतों को पूरा करने के लिए मुद्रा बैंक ने तीन प्रकार के कर्ज की शुरुआत की हैः
- शिशुः इसके दायरे में 50 हजार रुपए तक के कर्ज आते हैं।
- किशोरः इसके दायरे में 50 हजार से 5 लाख रुपए तक के कर्ज आते हैं।
- तरुणः इसके दायरे में 5 से 10 लाख रुपए तक के कर्ज आते हैं।
ये क़र्ज़ वर्किंग कैपिटल के तौर पर दिया जाता है और इसे मैन्युफैक्चरिंग, ट्रेडिंग और सर्विसेज समेत कृषि से जुड़े कामों जैसे कारोबार के लिए लिया जा सकता है।
आंकड़े क्या कहते है?
वित्त मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 2,82,594.30 करोड़ रुपये बतौर क़र्ज़ दिए गए। इनमें से 46 फीसदी राशि शिशु लोन के तहत, 32 फीसदी किशोर और 22 फीसदी तरुण कैटिगरी के तहत दिया गया।
इन अकाउंट्स में से महिला कर्जदारों की संख्या 340.45 लाख और एससी/एसटी/ओबीसी कर्जदारों की संख्या 259.71 लाख है। वहीं डेटा से पता चलता है कि नए कारोबारियों की संख्या 107.57 लाख रही।
मुद्रा योजना के तहत महिला लाभार्थियों की हिस्सेदारी क़रीब 75फीसदी है। इनमें से आधी से अधिक महिलाएं समाज के पिछड़े तबके से आती हैं।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और एनपीए
आरबीआई के मुताबिक, सरकार से मुद्रा लोन लेकर बिजनेस शुरू करने वाले पैसा नहीं चुका रहे हैं। अकेले PMMY योजना से बैड लोन का बोझ 11 हजार करोड़ रुपये तक बढ़ चुका है। भारत के सबसे बड़े बैंक के लिये इस योजना के कारण आने वाला एनपीए लगभग 5.2% है।
मुद्रा लोन, क़र्ज़ जोखिम के संभावित कारणों में से एक है। इसके अलावा सरकार द्वारा महत्त्वाकांक्षी क्रेडिट लक्ष्यों को प्राप्त करने की परंपरा भी क़र्ज़ जोखिम का कारण बनती जा रही है। दरअसल कभी-कभी क्रेडिट लक्ष्यों को हासिल करने के लिये वाज़िब प्रक्रियाओं को छोड़ दिया जाता है जो भविष्य में NPA जैसे हालत का कारण बनता है।